बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चों को गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी चाइल्ड केयरए गोद लेने की छुट्टी या मातृत्व अवकाश की हकदार है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक मां का मौलिक अधिकार है कि वह अपने नवजात शिशु को मातृत्वपूर्ण देखभाल और स्नेह प्रदान कर सकेए चाहे मातृत्व किसी भी प्रकार से प्राप्त हुआ हो। जस्टिस विभु दत्ता गुरु की बेंच ने स्पष्ट किया कि जैविक और गोद लेने वाली या सरोगेट माताओं के बीच मातृत्व लाभों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि दत्तक ग्रहणए संतान पालन अवकाश केवल लाभ नहीं हैए बल्कि एक ऐसा अधिकार है जो किसी महिला को उसके परिवार की देखभाल करने की मूलभूत आवश्यकता को पूर्ण करता है।

कोर्ट ने कहा कि, याचिकाकर्ता 1972 नियमों के तहत 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी की अधिकारी हैं। चूंकि उन्हें मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत पहले ही 84 दिन की छुट्टी मिल चुकी थी, इसलिए शेष को समायोजित किया जाए। याचिका के मुताबिक वर्ष 2013 में याचिकाकर्ता की आईआईएम, रायपुर में नियुक्ति हुई है। वर्तमान में सहायक प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनका 2006 में विवाह हुआ है। 20 नवंबर 2023 को दो दिन की बच्ची को गोद लिया अधिकारी हैं। उनका 2006 में विवाह हुआ है। 20 नवंबर 2023 को दो दिन की बच्ची को गोद लिया और 180 दिनों के लिए अवकाश के लिए आवेदन किया। संस्थान ने छुट्टी को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि एचआर नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। दायर याचिका के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मां बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। महिला के लिए बच्चे के जन्म को सुविधाजनक बनाने हेतु जो कुछ भी आवश्यक है, नियोक्ता को उसके प्रति विचारशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए जो एक कामकाजी महिला को होती हैं

संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42 और 43 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि गोद लेने वाली माताएं भी जैविक माताओं की तरह गहरा स्नेह रखती हैं। उन्हें भी समान मातृत्व अधिकार मिलने चाहिए। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा, महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार है।

By kgnews

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