राजनांदगांव गर्भवतियों को डिलीवरी कराने मेडिकल कॉलेज अस्पताल पेंड्री से जिला अस्पताल के बीच चक्कर काटना पड़ रहा है। एमसीएच में महज से 2 से 3 डॉक्टरों और करीब 10 नर्सेज के भरोसे प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग संचालित किया जा रहा है। स्टाफ की कमी होने के कारण यहां गर्भवतियों को डिलीवरी कराने भर्ती नहीं लेने और निजी अस्पतालों में भेजने की शिकायतें लगातार सामने आ रही है। एमसीएच में डिलवरी नहीं हो पाने की जानकारी मिलने पर गर्भवतियों को परिजन मजबूरी में निजी अस्पताल ले जाते है। ऐसे में परिजन गर्भवतियों को निजी नर्सिंग होम में ले जाने मजबूर होते है। शासन ने आयुष्मान कार्ड से डिलीवरी के पैकेज को हटा दिया है। सरकारी अस्पतालों में डिलवरी कराने पर्याप्त स्टाफ और संसाधन, सुविधा नहीं होने के कारण निजी अस्पतालों में डिलीवरी करानी पड़ती है। निजी अस्पतालों में ऑपरेशन की नौबत आई तो 40 से 50 हजार रुपए का खर्च आता है। निजी अस्पतालों भी ग्रामीण इलाकों के मरीजों को आयुष्मान कार्ड से डिलीवरी और इलाज होने की बात कह कर भर्ती मदर एंड चाइल्ड अस्पताल में बेहतर सुविधा मिल रही एमसीएच के अधीक्षक डॉक्टर प्रदीप बेक का कहना है कि डॉक्टर्स और स्टाफ कम है जिनकी भर्ती शासन स्तर से की जाएगी। एमसीएच के गायनिक वार्ड में बेड फुल होने की स्थिति में ही गर्भवतियों को बसंतपुर जिला अस्पताल में संचालित हो रहे 100 बेड मदर एंड चाइल्ड केयर यूनिट अस्पताल में जाने की सलाह दी जाती है। वहां गर्भवतियों के लिए 60 एवं बच्चों के लिए 40 बेड है। प्रसव एवं शिशुओं के इलाज व देखभाल के लिए एसएनसीयू की सुविधा है। की सुविधा है। स्टाफ भी पर्याप्त है। यहां सोनोग्राफी एवं एक्स-रे की सुविधा भी है। लिखित शिकायत मिली तो एक्शन लेंगे: प्रदीप बेक प्रदीप बेक का कहना है यहां किसी ने निजी अस्पताल जाने की सलाह दी तो कार्रवाई होगी। फिलहाल ऐसी कोई लिखित शिकायत नहीं है। लोग स्वयं निर्णय लेकर निजी अस्पताल जाते हो ऐसा हो सकता है। गंभीर मामले में जिला अस्पताल से रिफर होकर यहां आने वाली गर्भवतियों की डिलवरी कराई जाती है और डिलीवरी के बाद भी कोई कॉम्पलिकेशन हो तो उसे भी डॉक्टर एवं स्टाफ कम होने के बाद भी हैंडल किया जाता है। इमरजेंसी या कॉम्पलिकेशन हो तो मरीज को भर्ती लेने से मना नहीं किया जाता है। मौजूदा स्टाफ पर दबाव रहता है।

By kgnews

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